सरहिंद फतेह दिवस: एक अमर विजय की कहानी

सरहिंद फतेह दिवस: एक अमर विजय की कहानी

“नानी, क्या आप मुझे एक कहानी सुनाएंगी?” छोटी गुरप्रीत ने अपनी नानी की ओर देखा, उनकी आँखों में चमक थी।

“बिलकुल, गुरप्रीत,” नानी ने मुस्कुराते हुए कहा। “मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुनाऊंगी जो हमें अपने वीर योद्धाओं पर गर्व करने पर मजबूर कर देगी। यह कहानी है सरहिंद फतेह की।”

अत्याचार का काल

“तो, सुनो,” नानी ने कहा, “हमारी कहानी साल 1704 की है। उस समय भारत में कट्टरपंथी बादशाह औरंगजेब की हुकूमत थी। उसकी अत्याचार और जुल्म ने हर किसी की ज़िंदगी को कठिन बना दिया था। मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी के खिलाफ साज़िश की, जिसने सिखों के इतिहास को बदल दिया।”

“मुगलों ने झूठी शपथ लेकर गुरु जी के शिष्यों पर हमला किया, जिससे सिखों को आनंदपुर का किला छोड़ना पड़ा। सरसा नदी पर गुरु जी का पूरा परिवार बिखर गया। छोटे साहिबजादे और माता गुजरी को गंगू रसोइए के धोखे से मुगलों ने सरहिंद के ठंडे बुर्ज में कैद कर लिया।”

क्रूरता की पराकाष्ठा

“उस समय सरहिंद का सूबेदार वजीर खान था। उसने छोटे साहिबजादों को इस्लाम कबूल करवाने की पूरी कोशिश की, लेकिन हर बार असफलता मिलने के कारण वह बौखला गया। उसने बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को जिंदा दीवारों में चुनवा दिया। ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी जी को इस क्रूरता का पता चला, तो उन्होंने भी अपना शरीर त्याग दिया।”

वीरता की विजय

“फिर क्या था,” नानी ने उत्साह के साथ कहा, “साल 1710 में, बाबा बंदा सिंह बहादुर जी ने गुरु जी की कृपा से एक बड़ी खालसा फौज तैयार की। उन्होंने सरहिंद पर आक्रमण किया और वजीर खान को उसकी क्रूरता का कड़ा जवाब देते हुए उसे मार डाला। उनके इस साहसिक कार्य से सरहिंद फतेह हुआ और खालसा ध्वज वहां लहराया।”

विजय का उत्सव

“तब से,” नानी ने कहा, “हर साल ‘सरहिंद फतेह दिवस’ मनाया जाता है, बाबा बंदा सिंह बहादुर की विजय की याद में। आज भी लोग इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं और उनकी शौर्यगाथा को याद करते हैं।”

“वाह, नानी! यह कहानी तो सचमुच बहुत रोमांचक और प्रेरणादायक है,” गुरप्रीत ने खुशी से कहा।

“हां, गुरप्रीत,” नानी ने हंसते हुए कहा, “यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमें हमेशा सच्चाई और न्याय के लिए लड़ना चाहिए।”

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